उत्तर प्रदेश के अस्थाई कर्मचारियों के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि दैनिक वेतन या वर्क चार्ज के आधार पर दी गई सेवा भले ही नियमितीकरण की पहले की क्यों ना हो पेंशन लाभों के लिए इस सेवा को क्वालीफाइंग सर्विस के रूप में गिना जाएग संविदा पर काम कर रहे कर्मचारियों के लिए यह बड़ा फैसला है न्यायमूर्ति मनीष माथुर ने इस मामले की सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश राज्य के प्रमुख मामले सहित 78 रिच या जीकर्ताओं को निपटाते हुए निर्णय दिया है कोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक मामले में बाध्यकारी बताते हुए यह फैसला सुनाया है।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि राज सरकार द्वारा इस मुद्दे पर ले गए उत्तर प्रदेश क्वालीफाइंग सर्विस फॉर पेंशन एंड वैलिडेशन एक्ट 2021 और उत्तर प्रदेश एंटायरमेंट तो पेंशन सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए सफल नहीं रहा है। इस निर्णय को सुनते हुए हाईकोर्ट ने उन सभी सरकारी आदेशों को रद्द कर दिया है जिनके द्वारा याचिकर्ताओं को पिछली सेवा को जोड़ने से इनकार करते हुए पेंशन लबों से वंचित किया गया था।
क्या है पूरा मामला
बता दें यह मामला उत्तर प्रदेश के 78 संविदा कर्मचारियों का है इस मामले के अंतर्गत कर्मचारियों द्वारा पेंशन देने के इनकार करने वाले विभिन्न विभागीय आदेशों को चुनौती दी गई थी उत्तर प्रदेश सरकार ने मुख्य रूप से दो आधारों पर पेंशन देने से मना कर दिया था पहले आधार कर्मचारियों की दैनिक वेतन या फिर वर्क चार्ज के रूप में की गई प्रारंभिक सर्विस को पेंशन के लिए अरिहक नहीं माना गया था उनकी सेवाओं को 1 अप्रैल 2005 की कट ऑफ तिथि के बाद नियमित किया गया था इसलिए उन्हें नई पेंशन योजना के दायरे में रखा गया उन्हें पुरानी पेंशन योजना से बाहर कर दिया गया था। कोर्ट ने इस पूरे मामले में संज्ञान लेते हुए संविदा कर्मचारियों को जो की 1974 में दैनिक वेतन या वर्क चार्ज के आधार पर नौकरी में आए थे उसमें से अधिकांश को 10 से 30 साल तक हो गए हैं और इन कर्मचारियों को नियमित किया गया था कोर्ट ने यह भी देखा कि कुछ मामलों में आज का करता नियमित नहीं हुए और रिटायरमेंट की आयु भी प्राप्त कर ली है।
संविदा कर्मचारियों ने रखा अपना पक्ष
संविदा कर्मचारियों ने तर्क दिया की प्रेम सिंह के फैसले ने अस्थाई कर्मचारियों को दी गई सेवाओं को पेंशन लाभ के तारे में स्पष्ट रूप से अंदर कर दिया था इसके साथ-साथ उन मामलों में भी जहां भी नियमितीकरण के बिना रिटायर हुए थे उन्होंने यह भी कहा कि बाद में लगाए गए एक्ट ऑफ 2021 और ऑर्डिनेंस ऑफ 2025 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए ले गए थे राज्य सरकार के मुख्य स्थाई अधिवक्ता ने तर्क दिया कि यह कर्मचारी पेंशन का दावा करने के हकदार नहीं थे क्योंकि उनकी सेवाएं न तो मौलिक नियुक्ति के आधार पर हुई थी और ना ही पेंशन लाभ लेने के लिए आर्यक सेवा के दायरे में आते थे राज्य का बचाव काफी हद तक नए कानून पर निर्भर कर रहा था।
कोर्ट ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला
1 अप्रैल 2025 की कट ऑफ वह गलत मानते हुए हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया की इन कर्मचारियों की प्रारंभिक अस्थाई सेवा को हरेक सेवा के रूप में जीना जाना है इसलिए 1 अप्रैल 2005 के बाद उनके नियति कारण का पहलू है प्रासंगिक हो जाता है कोर्ट ने माना की 1 अप्रैल 2005 के बाद सेवा में नियति कारण के लिए बावजूद ब्याज का करता पेंशन और ऐसे सभी लाभों के हकदार होंगे बिना नियति कारण के रिटायर्ड होने वाले कर्मचारी भी इस दायरे में आएंगे कोर्ट ने माना की प्रेम सिंह और अन्य के मामलों के आधार पर ऐसे कर्मचारी जो सालों से सेवा के बाद बिना नियुक्तिकरण ही रिटायर हो गए हैं वे सभी पेंशन और पेंशन भोगी लाभों के हकदार होंगे कोर्ट ने सुनवाई करते हुए फाइनल आदेश दिया कि इन कर्मचारियों की पुरानी सेवा को भी जोड़ते हुए पेंशन का लाभ दिया जाए।

